बचपन से देखता आया कि मेरे चाचा और अन्य रिश्तेदार सिगरेट और शराब का सेवन करते थे। फिर मैंने एक हिंदी फिल्म देखी। इसमें एक शराब पीने वाले किरदार को कितना रौबदार दिखाया है। मुझ पर इसका गहरा असर पड़ा। इसके बाद यार दोस्त ऐसे मिल गए जो कहते थे। आओ सिगरेट पीते हैं। एक सिगरेट से क्या होगा।

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मैंने सोचा पिता जी भी तो पीते हैं, इससे थोड़ी कुछ होता है। वहां से मेरे जीवन में नशे का दलदल शुरू हुआ और मैं इसमें धंसता ही चला गया। अब जब बाहर निकला तो जीवन का अहम हिस्सा गंवा चुका है। नशे के कारण पत्नी से तलाक हो गया और अब माता-पिता का इकलौता सहारा हूं। ऊना शहर में रहने वाले एक एमटेक पास युवक का यह कहना है।

इसने बताया कि पिता सरकारी अधिकारी थे। स्कूल में था तो 11वीं और 12वीं में सिगरेट पीना शुरू किया। इसके बाद पंजाब के प्रसिद्ध इंजीनियरिंग कॉलेज में बीटेक करने चला गया। वहां गलत काम करने पर कोई रोकने वाला नहीं था। दोस्तों के साथ कभी-कभार नशा करना शुरू कर दिया। फिर सप्ताह में एक बार और कब प्रतिदिन नशा करने पर आ गए पता नहीं चला।

यही सोचता था कि घर के आसपास भी कई लोग नशा करते हैं, उन्हें तो कुछ नहीं हुआ। एमटेक पूरी होने पर मेरी नौकरी अफ्रीका में एक प्रसिद्ध मोबाइल कंपनी में लगी। मेरे पास करीब सात अफ्रीकन देशों का कार्यभार था। इस दौरान मेरी शादी भी हुई। अफ्रीका में तो नशे की भरमार थी। दिन में भी लोग नशा करते थे।

मैं सुबह और शाम नशे में रहने लगा। वहां से जब वापस भारत लौटा तो यहां दिन में नशा ढूंढना और करना आसान नहीं था, लेकिन नशे की लत ऐसी थी कि मैं घर आकर दिन में नशा करने लगा। नशे में रहने के कारण पत्नी से झगड़े होने लगे और अंततः तलाक हो गया। इसके बाद माता-पिता ने मेरा हाथ थामा और मेरी लत को छुड़वाने के लिए नशा छुड़ाओ केंद्र में संपर्क किया। वहां हमें बताया गया कि एक नशेड़ी और अच्छे जीवन में अंतर क्या है। पूरा दिन किस प्रकार की गतिविधियों में बिताना और नशे से कैसे बचकर रहना, यह हमें सिखाया गया। 

करीब चार महीने लगे और नशे के बिना जीवन बेहतर लगने लगा। अफसोस है कि मुझे यह समझने में अपनी जीवन के 10 साल गंवाने पड़े की नशा मेरी जिंदगी बर्बाद कर रहा है। आज मैं ऊना अस्पताल में प्रतिदिन लगने वाले लंगर में सेवा करता हूं और अपनी दिनचर्या अच्छे तरीके से जी रहा हूं। मेरे माता-पिता भी मुझे देखकर खुश हैं। युवक ने कहा कि नशा किसी भी प्रकार का हो यह हमारा मानसिक स्वास्थ्य खराब करता है। हमारी युवा पीढ़ी को सबसे अधिक इससे बचाने की आवश्यकता है।

नशा मुक्त अभियान में हुआ शामिल

युवक ने बताया कि अब नशा मुक्त ऊना अभियान में वह विभिन्न क्षेत्रों में लोगों को जागरुक कर रहा है। बीते दिनों आंगनबाड़ी कार्याकर्ताओं के साथ हरोली, गगरेट, बंगाणा के कई हिस्सों में जाकर लोगों को बताया कि नशा कैसे जीवन बर्बाद कर देता है। नशा मुक्ति केंद्रों में भी जाता हूं। कहा कि मैं लोगों को बताता हूं कि जब मैं नशा करता था तो मेरे माता पिता मुझे पास की दुकान से सब्जी लाने तक नहीं भेजते थे।

रातभर जागकर काटते थे। जब दूध लाने जाता तो लोगों को पता था कि ये बिना शराब पिए नहीं लौटेगा। अब वह लोग मुझे देखकर हैरान होते हैं। मेरी समाज में छवि अच्छी होने लगी है। सबसे बड़ी बात कि माता पिता मुझपर भरोसा करने लगे हैं। लेकिन शायद उनके भीतर के डर को दूर करने में अभी और समय लगेगा।

दवाई को बना लिया नशे का खुराक

ऊना में सरकारी नौकरी कर रहे युवक ने बताया की उसे मेडिकल नशे की लत लग गई। घर में छोटी बच्ची थी लेकिन नशे की लत में अपनी बच्ची को भूल गया। नौकरी के दौरान मैं अचानक किसी भी बात पर हाइपर हो जाता था। मेरे साथ काम करने वाले मेरे व्यवहार से डरने लगे। इसके बाद मैंने नशा छोड़ने के लिए काउंसलिंग का सहारा लिया।

नशा छुड़ाओं केंद्र गया। वहां मुझे नशा छोड़ने के लिए कुछ गोलियां दी गई, लेकिन इससे मेरी लत नहीं छूटी और मैंने उन्हीं गोलियों को नशे के तौर पर खाना शुरु कर दिया। एक दिन में 100 गोलियां खा जाता था। मेरे साथ मेरा परिवार भी बर्बाद होने लगा तो मरने को दिल किया, लेकिन नशे से लड़ने का फैसला किया। नशा छुड़ाओं केंद्र में दोबारा गया और फिर नशे के खिलाफ लड़ना शुरु किया। लंबे संघर्ष के बाद आज जीवन सुखद है।

स्कूल-कॉलेज नशा माफिया का टारगेट

जिले में नशा छुड़ाओं केंद्र का संचालन कर रहे अजय भारती ने बताया कि स्कूल और कॉलेज में पढ़ाई कर बच्चे नशा माफिया का टारगेट है। इस उम्र में बच्चे आसानी से गलत आदतों का शिकार होते हैं। कहा कि माफिया से जुड़े लोग पर चिट्टा जैसे नशे की डोज बच्चों को मुफ्त में देते हैं।

वह बच्चों को बोलते हैं कि इससे पढ़ाई करने में तुम अच्छे हो जाओगे, चीजें जल्दी याद होने लगेंगे। लेकिन जब बच्चा नशे की लत में घिर जाता है तो इससे मोटी रकम वसूलते हैं। कहा कि हमारी आने वाली नस्लें चिट्टा खत्म कर रहा है।

बता दें कि वर्तमान में ऊना में जमीन स्तर पर नशे के खिलाफ बड़े स्तर पर अभियान छिड़ा है जो एक साल तक जारी रहेगा। इसकी निगरानी खुद उपमुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री कर रहे हैं। इसमें शैक्षणिक संस्थानों में विभिन्न गतिविधियों से नशे के दुष्परिणाम जा रहे हैं। इसके साथ पुलिस प्रशासन ने भी नशा माफिया के खिलाफ कमर कस ली है। पुलिस अधीक्षक ऊना अर्जित सेन ठाकुर ने बताया कि जिले में इस साल पुलिस ने नशे के खिलाफ 134 मामले दर्ज किए।

ऊना में संभवतः देश का पहला ऐसा जिला है जहां नशे के खिलाफ अभियान इतने बड़े स्तर पर चला है। जमीनी स्तर पर उतरकर हर विभाग का अधिकारी युवाओं को नशे के खिलाफ जागरूक करने में जुटा है। यह समय की मांग है। अगर हम अभी से सतर्क नहीं हुए तो भविष्य की पीढ़ी को नशे से बचाना बेहद मुश्किल हो जाएगा। स्थानीय लोग भी इस अभियान में भागीदारी सुनिश्चित करें। – राघव शर्मा, उपायुक्त ऊना।