हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा है कि मंदिर ट्रस्टी के रूप में राज्य और उसके पदाधिकारियों को हिंदू धर्म के मूल सिद्धांतों, संतों, गुरुओं की शिक्षाओं और संविधान के आदेशों के अनुरूप हिंदू धर्म के सिद्धांतों का प्रचार करने के लिए एक तंत्र और बुनियादी ढांचा विकसित करना चाहिए। इसके लिए हिंदू समाज के सभी वर्गों, जातियों और संप्रदायों के अर्चकों, पंडितों, पुजारियों और कथावाचकों की आवश्यकता है, जिनका स्वभाव और हिंदुत्व के साथ तालमेल हो। जैसा कि सर्वोच्च न्यायालय ने हिंदू धार्मिक ग्रंथों, महान गुरुओं, संतों और समाज सुधारकों की ओर से प्रचारित जीवन शैली के आधार पर समझाया है, जो हिंदू धर्म के मूल सिद्धांतों पर आधारित हो।

मंदिरों का धन खर्च करने से जुड़े आदेश में न्यायाधीश विवेक सिंह ठाकुर और राकेश कैंथला की खंडपीठ ने कहा कि हिंदू धर्म की पृष्ठभूमि और सिद्धांतों को ध्यान में रखते हुए हिंदू सार्वजनिक धार्मिक संस्थान और धर्मार्थ निधि अधिनियम की धारा 17 के अंतर्गत किए जाने वाले व्यय को समझना होगा। खंडपीठ ने कहा कि मंदिर को दान की गई धनराशि का दुरुपयोग रोकने और इच्छित उद्देश्यों के लिए उसके उपयोग को रोकने को उसे विनियमित करना जरूरी है। खंडपीठ ने कहा कि समय के साथ और आक्रमणों या अन्य कारणों से हिंदू समाज के आचरण में गिरावट और विकृति आई, जिसके परिणाम में अस्पृश्यता, सती प्रथा, महिलाओं को शिक्षा और निर्णय लेने की प्रक्रिया से वंचित करना, बाल विवाह आदि अस्वीकार्य और बुरी प्रथाएं अपनाई गईं।

ये हिंदू दर्शन के मूल सिद्धांतों के विपरीत थीं और हैं। जाति व्यवस्था और उस पर आधारित भेदभाव को जारी रखने की वकालत करने वाले लोग इसे धर्म से जोड़ते हैं, लेकिन वे ऐसा अज्ञानता के कारण करते हैं, क्योंकि ऐसे विचार धर्म के मूल और सच्चे सार के विपरीत हैं। अधिग्रहित 36 मंदिरों के पास 404.39 करोड़ रुपये की धनराशि जमा है। सबसे ज्यादा धनराशि माता चिंतपूर्णी मंदिर ऊना में 106.94 करोड़ रुपये है। नयना देवी मंदिर में 98.82, ज्वालाजी मंदिर कांगड़ा में 36.71 करोड़, रामगोपाल मंदिर डमटाल के पास 16.92 करोड़, बाबा बालकनाथ मंदिर दयोटसिद्ध के पास 46.20 करोड़, शाहतलाई के पास 11.14 करोड़, दुर्गा माता मंदिर हाटकोटी में 14.68 करोड़ रुपये की राशि जमा है।