हिमाचल प्रदेश में महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) में हाजिरी लगाते समय झपकती पलकें बताएंगी कि आप काम पर हैं। प्रदेश में अब मनरेगा मजदूरों का चेहरा स्कैन कर हाजिरी लगेगी। ऑनलाइन हाजिरी लगाने के लिए पंचायत प्रतिनिधियों को एनएमएमएस (राष्ट्रीय मोबाइल मॉनिटरिंग सिस्टम) साॅफ्टवेयर का इस्तेमाल करना होगा। इस दौरान एक साथ 10 मनरेगा मजदूरों की हाजिरी लगाई जा सकेगी। इसके अलावा यह हाजिरी कार्यस्थल से 30 मीटर के दायरे में ही लग पाएगी।
जानकारी के अनुसार हिमाचल प्रदेश में मनरेगा कार्यों में और अधिक पारदर्शिता लाने के लिए अब योजना के तहत काम करने वाले मजदूरों की हाजिरी फेस रीडिंग के जरिये लगाई जाएगी। इसके लिए मनरेगा योजना में बड़े पैमाने पर हो रहे फर्जीवाड़े पर नकेल कसने के लिए एनएमएमएस सिस्टम का नया अपडेटेड वर्जन लांच किया गया है। इस अपडेटेड वर्जन में मोबाइल मॉनिटरिंग सिस्टम से उन्हीं श्रमिकों की उपस्थिति लगेगी, जिनकी पलकें झपकेंगी। ऐसा नहीं होने पर उपस्थिति कॉलम में श्रमिक की फोटो अपलोड नहीं हो सकेगी।
मौजूदा समय में मनरेगा मजदूरों की हाजिरी कार्यस्थल पर फोटो खींचकर लगाई जाती है। लेकिन, ऐसे में कई शिकायतें मिल रही थीं कि हाजिरी के नाम पर फर्जीवाड़ा कर घर बैठे लोगों को श्रमिक दिखाया जा रहा था। इसके अलावा कई श्रमिक मनरेगा मस्टररोल में पंजीकृत होने के बावजूद कार्य स्थल पर नहीं पहुंच रहे हैं, जबकि उनकी हाजिरी लग जाती है। इन्हीं अव्यवस्थाओं को देखते हुए अब फेस रीडिंग कर हाजिरी लगाने की नई व्यवस्था को अपनाया जा रहा है।
राष्ट्रीय मोबाइल मॉनीटरिंग सिस्टम नाम से बनाई गई विशेष एप में हाजिरी लगाने की व्यवस्था की गई है। इस दौरान मनरेगा मस्टररोल में के पहले पन्ने पर दर्ज मजदूरों को एक साथ इकट्ठा किया जाएगा। उसके बाद मस्टररोल में दर्ज मजदूरों की उपस्थिति के अनुसार उनके कॉलम के आगे टिक किया जाएगा और उनकी फोटो खींची जाएगी। इस दौरान साॅफ्टवेयर मजदूरों की झपकती पलकों के साथ उनके सिरों की भी गिनती करेगा। जितने मजदूरों की हाजिरी पर टिक किया गया होगा, उतने ही लोगों की उपस्थिति जरूरी होगी।
मनरेगा मजदूरों की हाजिरी लगाने के लिए राष्ट्रीय मोबाइल मॉनीटरिंग सिस्टम का इस्तेमाल किया जा रहा है। अब इस सिस्टम के वर्जन को कुछ अपडेट किया गया है और अपडेट वर्जन में कुछ बदलाव हुए हैं, उन्हीं बदलावों के तहत अब मनरेगा मजदूरों की हाजिरी लगेगी।– चंद्रवीर सिंह, परियोजना अधिकारी, डीआरडीए कांगड़ा