जरूरी नहीं, फिर भी एंटीबायोटिक दवाएं लिखी जा रही हैं। इस कारण ये बेअसर हो रही हैं। यह खुलासा सिविल अस्पताल कांगड़ा और पीजीआई चंडीगढ़ समेत कई संस्थानों के अध्ययन में हुआ है। उत्तर भारत के विभिन्न राज्यों के 1219 मरीजों पर परीक्षण किया गया। इनमें एंटीबायोटिक दवाओं का सेवन करने वालों में 20 से 40 साल उम्र के मरीजों की संख्या अधिक रही है। 57 फीसदी में यूरिनरी ट्रैक्ट और 29 फीसदी में श्वास के रोग के लिए दवा का प्रयोग तार्किक पाया गया।

यह अध्ययन स्नातकोत्तर चिकित्सा शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान चंडीगढ़ के मेडिकल माइक्रोबायोलॉजी विभाग के डॉ. विनय मोदगिल ने किया। इसमें सिविल अस्पताल कांगड़ा में कार्यरत रहे डॉ. विवेक करोल ने भी सहयोग किया। इस अध्ययन को इंटरनेशनल जर्नल ऑफ मेडिकल माइक्रोबायोलॉजी में छापा गया। इनमें से 33 प्रतिशत मरीज शहरी और 66 प्रतिशत ग्रामीण क्षेत्रों से संबंधित थे। इस नए अध्ययन ने चिंता जताई है कि एंटीबायोटिक दवाओं का अतार्किक उपयोग किया जा रहा है, जो रोगाणुरोधी प्रतिरोध के वैश्विक खतरे को और बढ़ा सकता है। इस क्रॉस-सेक्शनल अध्ययन में अगस्त 2021 और अगस्त 2022 के बीच 1,219 बाह्य रोगियों के लिए जारी एंटीबायोटिक उपचार का विश्लेषण किया। दवा के प्रकार, खुराक, अवधि और राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय उपचार दिशा-निर्देशों के अनुपालन के आधार पर प्रिस्क्रिप्शन का मूल्यांकन किया।

निष्कर्षों से पता चला कि क्लैवुलैनिक एसिड युक्त एमोक्सिसिलिन सबसे अधिक निर्धारित एंटीबायोटिक यानी 27.2 प्रतिशत था। इसके बाद मेट्रोनिडाजोल यानी 13.4 प्रतिशत और एजिथ्रोमाइसिन 10.3 प्रतिशत था। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अवेयर वर्गीकरण के अनुसार लगभग आधी प्रिस्क्रिप्शन यानी 49.7 प्रतिशत प्रिस्क्रिप्शन एक्सेस ग्रुप में आते हैं, जबकि एक चौथाई से ज्यादा यानी 27.3 प्रतिशत वॉच श्रेणी में आते हैं। रिजर्व समूह से कोई भी एंटीबायोटिक निर्धारित नहीं किया गया। तर्कसंगतता की जांच से पता चला कि मूत्रमार्ग संक्रमण के लिए 57 प्रतिशत प्रिस्क्रिप्शन सही थी, लेकिन श्वसन मार्ग संक्रमण के लिए केवल 29 प्रतिशत प्रिस्क्रिप्शन तर्कसंगत मानी गई। दस्त और श्वसन मार्ग संक्रमण को अनावश्यक एंटीबायोटिक सेवन को कम करने के प्राथमिक लक्ष्य के रूप में पहचाना गया।

इस शोध पत्र के प्रमुख लेखक डॉ. विनय मोदगिल और उनके सहयोगियों ने एंटीबायोटिक प्रबंधन को मजबूत करने की तत्काल जरूरत पर बल दिया। शोधकर्ताओं ने कहा कि हमारा अध्ययन स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं के लिए निरंतर प्रशिक्षण और साक्ष्य-आधारित प्रोटोकॉल के सख्त पालन के महत्व को रेखांकित करता है।