अनुबंध सेवाओं को पेंशन के लिए गिने जाने के हाईकोर्ट के निर्णय पर सुप्रीम कोर्ट ने मुहर लगा दी है। न्यायाधीश एस. रवींद्र भट्ट और न्यायाधीश अरविंद कुमार की पीठ ने राज्य सरकार की अपील को खारिज कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को आदेश दिए कि वह कर्मचारियों से विकल्प लें और पेंशन का निर्धारण करे। अदालत ने सारी प्रक्रिया के लिए सरकार को चार महीनों का समय दिया गया है।

26 दिसंबर 2019 को हाईकोर्ट के वरिष्ठ न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान और न्यायाधीश सीबी बारोवालिया की खंडपीठ में आयुर्वेदिक चिकित्सक की विधवा शीला देवी की याचिका में अनुबंध सेवा को पेंशन के लिए जोड़े जाने का निर्णय सुनाया था। अदालत ने निर्णय में कहा था कि जीवन के खुशहाली के दिनों में कम वेतन पर अनुबंध के आधार पर दी गई सेवाओं से राज्य सरकार को ही लाभ हुआ है।

इस दौरान दी गई सेवाओं को पेंशन के लिए न गिना जाना राज्य सरकार के अनुचित व्यापारिक व्यवहार को दर्शाता है। जिसकी अनुमति कानून प्रदान नहीं करता है। अदालत ने याचिकाकर्ता के पति की ओर से अनुबंध के आधार पर दी गई सेवाओं को पेंशन के लिए गिने जाने को न्याय संगत पाया था। अदालत ने राज्य सरकार को आदेश दिए थे कि अनुबंध सेवाओं को पेंशन के लिए गिना जाए। याचिकाकर्ता शीला देवी के पति को वर्ष 1999 में आयुर्वेदिक चिकित्सक के पद पर अनुबंध के आधार पर नियुक्त किया गया था।

वर्ष 2009 को उनकी सेवाओं को नियमित कर दिया गया था। 23 जनवरी 2011 को याचिकाकर्ता के पति का देहांत हो गया था। याचिकाकर्ता की ओर से राज्य सरकार के समक्ष पेंशन के लिए आवेदन दिया गया था। राज्य सरकार की ओर से याचिकाकर्ता के आवेदन को यह दलील देते हुए खारिज कर दिया था कि अनुबंध सेवाओं को पेंशन के लिए नहीं गिना जा सकता।