रविवार को जिला मुख्यालय नाहन में भगवान श्री जगन्नाथ की भव्य शोभा यात्रा निकाली गई। यात्रा में सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालुओं ने भाग लिया और हर कोई भगवान श्री जगन्नाथ का रथ खींचने के लिए उत्साहित नजर आया। कहा जाता है कि भगवान जगन्नाथ के रथ का रास्ता खींचने से लोगों की मन्नतें पूरी हो जाती है। पिछले 16 सालों से नाहन शहर में लगातार रथ यात्रा निकाली जा रही है। जिसका जिम्मा जगन्नाथ रथ यात्रा समिति संभालती है

नाहन शहर में निकाली जाने वाली यह यात्रा आपसी भाईचारे का भी प्रतीक है क्योंकि यात्रा में शहर के विभिन्न धर्मों के श्रद्धालु शिरकत करते हैं। यात्रा ऐतिहासिक चौहान मैदान से शुरू हुई और शहर के माल रोड, गुन्नूघाट, पक्का टैंक, कच्चा टैंक आदि क्षेत्रों से होते हुए वापिस दिल्ली गेट पहुंची। इस दौरान श्रद्धालुओं व विभिन्न संस्थाओं द्वारा जगह-जगह पर लोगों के लिए प्रसाद के स्टाल लगाए गए थे।

जगन्नाथ रथ यात्रा में शामिल होने पहुंचे स्थानीय लोगों ने कहा कि शहर में 16वीं बार यह यात्रा निकाली जा रही है। उन्होंने कहा कि हर साल यात्रा में पहुंचने वाले लोगों की संख्या लगातार बढ़ रही है। जिसमें बाहरी राज्यों से भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। उन्होंने कहा कि नाहन में भगवान जगन्नाथ जी का सिद्ध पीठ है जिससे लोगों की आस्था जुड़ी हुई है। उन्होंने कहा कि नाहन में निकाले जाने वाली जगन्नाथ रथ यात्रा की खास बात यह भी है कि यहां विभिन्न धर्मों के लोग इस यात्रा में शामिल होते हैं जिसमें हिंदू, मुस्लिम सिख और ईसाई शामिल हैं।

भगवान जगन्नाथ का रथ

भगवान जगन्नाथ के रथ को नंदीघोष अथवा गरुड़ध्वज कहा जाता है, इनका रथ लाल और पीले रंग का होता है। रथ हमेशा नीम की लकड़ी से बनाया जाता है। हर साल बनने वाले ये रथ एक समान ऊंचाई के ही बनाए जाते हैं। भगवान जगन्नाथ का रथ 44 फीट 2 इंच ऊंचा होता है। इस रथ में कुल 16 पहिए होते हैं। रथ यात्रा में भगवान जगन्नाथ का रथ सबसे आखिरी में चलता है। 

रथ का नाम- नंदीघोष
ध्वज का नाम- त्रैलोक्यमोहिनी
ऊंचाई- 44 फीट 2 इंच
पहियों की संख्या- 16
संरक्षक- गरुड़
सारथी- दारुका
घोड़ों के नाम (सफेद)- शंख, बलाहक, सुवेता, दहिदाश्व
रथ की रस्सी का नाम- शंखचूड़ नागिनी
साथी देवता- मदनमोहन

रथ खींचने में मिलने वाला फल

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जो व्यक्ति रथ यात्रा में शामिल होकर स्वामी जगन्नाथजी के नाम का कीर्तन करता हुआ गुंडीचा नगर तक जाता है वह सारे कष्टों से मुक्त हो जाता है, जबकि जो व्यक्ति जगन्नाथ को प्रणाम करते हुए मार्ग के धूल-कीचड़ आदि में लोट-लोट कर जाता है वो सीधे भगवान विष्णु के उत्तम धाम को प्राप्त होता है।