हिमाचल प्रदेश में विलुप्त होने की कगार पर पहुंची लाल चावल की फसल अब फिर से लहलहाने लगी है। कृषि विशेषज्ञों के अनुसार खाद्यान्न के रूप में उपभोग की जाने वाली लाल चावल की फसल लगभग 10 हजार वर्ष पुरानी आंकी जाती है। सुगंधित लाल चावल की फसल में विशेष पोषाहार तथा औषधीय तत्व हैं। इन्हें परंपरागत रूप में ब्लड प्रेशर, कब्ज, महिला रोग, ल्यूकोरिया जैसे रोगों के उपचार में प्रयोग किया जा रहा है। इस दिनों शिमला जिले के रामपुर के लवी मेले में बिक्री के लिए रखे गए विभिन्न किस्मों के चावल लोगों के आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं। इनमें छोहारटू व पैजा चावल खास है। 

लवी मेले में बीते कई सालों से चावल का कारोबार करने वाले कारोबारी अमरनाथ ने बताया कि पैजा एक जैविक चावल है और शुगर फ्री है। शुगर के मरीज इस चावल का सूप को पी सकते हैं। दस्त में भी इसका सूप लाभदायक होता है। इस चावल का सूप पेट के लिए रामवाण है। उन्होंने कहा कि इस खास किस्म के चावल का पेटेंट करवाया गया है। यह राष्ट्रपति से सम्मानित चावल है। इस चावल का दाम प्रति किलो 800 रुपये है।