हिमाचल की सियासत में आए तूफान की लहरें शांत नहीं हुई हैं। उनका असर लोकसभा चुनाव में नजर आएगा। भाजपा को इन लहरों के सहारे अपनी नैया पार लगने की आस है। हिचकोले न रुके तो कांग्रेस की नाव को भंवर से निकलना मुश्किल होगा। लोकसभा चुनाव के साथ ही इस बार अयोग्य घोषित किए गए कांग्रेस के छह विधायकों के क्षेत्रों में विस उपचुनाव भी होने से चुनावी माहौल दिलचस्प हो गया है। यह चुनाव कांग्रेस व भाजपा ही नहीं, राज्य की सुक्खू सरकार की भी दशा-दिशा तय करेंगे। राज्यसभा चुनाव के बाद यह सरकार के लिए एक और इम्तिहान होगा।

कांग्रेस को उम्मीद थी कि अपनी सरकार होने का फायदा उसे मिलेगा, अभी केवल डेढ़ साल ही सरकार को हुआ है, इसलिए सत्ता विरोध उतना नहीं होगा। लेकिन चुनाव से कुछ दिन पहले ही राज्यसभा की एक सीट के लिए हुए चुनाव के दौरान पार्टी के छह विधायकों की बगावत ने पूरा परिदृश्य और समीकरण ही बदल दिए हैं। भाजपा इन्हीं अयोग्य विधायकों के बूते कांग्रेस को जितना संभव हो सके, उतना नुकसान पहुंचाने की पूरी फिराक में है। पिछले लोकसभा चुनाव में मोदी लहर और राज्य में पार्टी की ही सरकार होने से चारों सीटें भाजपा की झोली में आई थीं।

बाद में मंडी उपचुनाव में सहानुभूति और राज्य सरकार के प्रति कुछ नाराजगी के चलते कांग्रेस की प्रतिभा सिंह ने सीट झटक ली थी। भाजपा को इस बार भी मोदी नाम की पतवार का सहारा तो है ही, कांग्रेस में उपजे असंतोष से भी उम्मीद है कि चारों सीटें जीतकर पार्टी के 400 पार मिशन में अपना सौ फीसदी दे देगी। एक ओर कांग्रेस अभी डैमेज कंट्रोल में ही जुटी हुई है, दूसरी ओर भाजपा ने दो उन सिटिंग सांसदों को प्रत्याशी घोषित भी कर दिया है जिनकी जीत के प्रति वह आश्वस्त है। केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर को हमीरपुर और सुरेश कश्यप को शिमला से मैदान में उतार पहले कदम में बढ़त बना ली है।

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