परवाणू-शिमला फोरलेन अभी पूरा बना भी नहीं और यह लगातार ढहता जा रहा है। तय मानकों के तहत कटिंग की अनुमति नहीं मिलना इसका बड़ा कारण है। विशेषज्ञों के अनुसार फोरलेन निर्माण के समय कंपनी ने 45 मीटर कटिंग करने के लिए सरकार और एनजीटी से अनुमति मांगी थी। इसमें 30 मीटर में सड़क और डिवाइडर बनने थे, 15 मीटर में स्टेप कटिंग होनी थी, मगर कंपनी को सिर्फ 35 मीटर कटिंग की ही अनुमति मिली थी।
तर्क दिया गया कि पहले ही फोरलेन के किनारे जगह कम है, ऐसे में ज्यादा अनुमति नहीं दी जा सकती। लिहाजा कंपनी के पास 30 मीटर सड़क बनाने के बाद मात्र पांच मीटर जगह कटिंग के लिए बची, जिसे उन्होंने सीधे काट दिया। सीधी कटिंग होने से अब यह पहाड़ लगातार दरक रहे हैं। जब तक पहाड़ में पक्की जगह नहीं आ जाती, यह लगातार दरकते जाएंगे।
बीते एक माह में ही चक्कीमोड़ पर फोरलेन कई दिन बंद रहने से प्रदेश की करोड़ों की आर्थिकी को झटका लगा है। कंपनी की ओर से 45 मीटर कटिंग की अनुमति मांगने का मकसद यह था कि उन्हें 15 मीटर पहाड़ की कटिंग करनी थी। इसमें पांच-पांच मीटर पर तीन स्टेप कटिंग होनी थी।
स्टेप कटिंग होने से इसमें मिट्टी के कम खिसकने की गुंजाइश रहनी थी। साथ ही इसमें पकड़ भी अधिक होनी थी। मगर अब केवल पांच मीटर सीधी कटिंग ही की गई। इसका नतीजा यह है कि यहां पर मिट्टी के रुकने को जगह नहीं है और यह सड़क पर आ रही है।
विशेषज्ञों के अनुसार फोरलेन के किनारे सभी शिवालिक पहाड़ियां हैं। यह सभी कच्ची मिट्टी से बनी हैं और इनमें चट्टानें भी नहीं है। साथ ही पेड़ के कटान होने से इसमें मिट्टी बिल्कुल ढीली पड़ गई है। उधर, फोरलेन के किनारे लगातार भूस्खलन से विश्व धरोहर कालका-शिमला रेलवे ट्रैक भी खतरे की जद में आ रहा है।
विशेषज्ञों के अनुसार यदि पहाड़ी क्षेत्रों में कहीं पर नई सड़क बनती है तो वहां पर दोबारा से मिट्टी पक्की होने में 30 से 40 वर्ष का समय लग जाता है। ऐसे में हाईवे पर पुख्ता इंतजाम नहीं किए जाते हैं तो फोरलेन के किनारे बने मकानों को आगामी वर्षों में लगातार खतरा बना रहेगा।
कंपनी ने फोरलेन निर्माण के लिए एनजीटी से 45 मीटर की अनुमति मांगी थी। जो उसे नहीं मिली। ऐसे में पहाड़ी में सीधी कटिंग करनी पड़ी। नियमों के तहत 45 से 55 मीटर तक कटिंग फोरलेन निर्माण में होती है। कम कटिंग होने से अब लगातार पहाड़ियां दरक रही हैं। बारिश भी इस बार अधिक हुई है, जिस कारण भी लगातार मिट्टी ढहती जा रही है। -बलविंदर सिंह, प्रोजेक्ट मैनेजर ग्रील कंपनी
परवाणू-शिमला फोरलेन के ढहने का बड़ा कारण है कि इसमें तय मानकों पर कटिंग नहीं हुई। कंपनी ने 45 मीटर की अनुमति मांगी थी, जबकि उन्हें 35 मीटर की अनुमति ही मिल पाई थी। इसी का खामियाजा है कि यह फोरलेन बार-बार ढह रहा है। हालांकि, बारिश भी अधिक हुई है। -प्रो. डीडी शर्मा, आचार्य भूगोल विज्ञान एचपीयू शिमला व पूर्व कुलपति सरदार पटेल विश्वविद्यालय मंडी
परवाणू-सोलन फोरलेन की बिना जांच किए ही लौट गई एनएचएआई की टीम
कालका-शिमला नेशनल हाईवे-5 पर पहले चरण में बने परवाणू-सोलन फोरलेन की जांच किए बिना ही राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण की विशेष टीम लौट गई है। कुल्लू के बाद इस टीम को यहां आना था, लेकिन लगातार मौसम खराब होने से टीम यहां पहुंची ही नहीं। ऐसे में यहां दरक रहे पहाड़ों को लेकर कोई योजना तैयार नहीं हो पाई। अब यह टीम कब आएगी, यह कहा नहीं जा सकता।
अभी तक केवल जायका टीम ने ही मौके पर आकर मुआयना किया है। जायका की रिपोर्ट अभी आनी बाकी है। इधर, एनएचएआई को चक्कीमोड़ में दरक रही पहाड़ी की चिंता भी सता रही है। पहाड़ी में बड़ी-बड़ी दरारें भी पड़ गई हैं। यह दरारें अब नेशनल हाईवे से भी देखी जा रही हैं। बीते दिनों हुई मूसलाधार बारिश में टीम मनाली-चंडीगढ़ फोरलेन का निरीक्षण के निरीक्षण के दौरान टीम वहां फंस गई थी।
इसके बाद टीम परवाणू-सोलन के लिए निकल नहीं सकी और 15-18 अगस्त तक तक केवल मनाली-चंडीगढ़ फोरलेन का निरीक्षण ही कर पाई। फोरलेन बनाने के बाद ढही सड़कों और दरक रहे पहाड़ों को बचाने के लिए विशेष टीम का गठन किया गया है। इस टीम में आईआईटी रुढकी, एनआईटी हमीरपुर और एनएचएआई के सेवानिवृत विशेषज्ञ शामिल किए गए थे। टीम का परवाणू-सोलन फोरलेन का निरीक्षण भी प्रस्तावित था।
दो टीमों की रिपोर्ट के आधार पर तैयार होनी थी ड्राइंग
एनएचएआई की ओर से दोनों टीमों की रिपोर्ट के आधार पर कालका-शिमला नेशनल हाईवे पर परवाणू-सोलन फोरलेन की नई ड्राइंग तैयार की जानी है। अब इस ड्राइंग को तैयार करने के लिए काफी अधिक समय लग जाएगा। एनएचएआई की ओर से पुन: केंद्र सरकार को टीम भेजने के लिए पत्राचार किया है।
1 अगस्त के बाद सात बार बंद हो चुका हाईवे
कालका-शिमला नेशनल हाईवे पांच 1 अगस्त से लेकर अब तक सात बार बंद हो चुका है। इससे अधिकतर परेशानी वाहन चालकों को होती है। बड़े ट्रक और बस चालकों को हाईव बंद होते ही रोक दिया जाता है। चक्कीमोड़ में लगातार मलबा सड़क पर आ जाता है। जिसके बाद यहां पर आवाजाही पूर्ण रूप से बंद हो जाती है।