लोक निर्माण विभाग 8 हजार से अधिक मुकदमे लड़ रहा है। ये मुकद्दमे मुकदमा भूमि अधिग्रहण, सेवा क्षेत्र की शिकायतें, आउट सोर्सिंग और अनुकंपा से संबंधित हैं। इन मुकदमों की वजह से विभागीय काम करने में परेशानी हो रही है। इतनी संख्या में ये मुकदमें नीति और खामियों को उजागर कर रहे है। भू्मि अधिग्रहण मामला लोक निर्माण विभाग के लिए हमेशा विवादास्पद रहा है। यह मुद्दे लंबी कानूनी लड़ाई की वजह बनते है। इसमें मुआवजे, स्वामित्व और प्रक्रियागत खामियों की वजह से मामले अदालत में हैं।
इन मामलों से विभागीय कार्रवाई में देरी होती और विभाग के संसाधनों पर दबाव भी डलते हैं। इसके साथ सेवा क्षेत्र और नीति विवाद लोक निर्माण विभाग के कर्मचारियों को प्रभावित करने वाली नीतियों में खामियों की वजह से मुकदमों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है। उदाहरण के लिए 1993 में जारी एक प्रमुख नीति ने 10 वर्षों की सेवा करने वाले लोक निर्माण विभाग के कर्मचारियों को सबसे निचले पद के बराबर वेतन का अधिकार दिया। इसके बाद 2000 में आए एक अध्यादेश में इस सेवा के कार्यकाल को कम कर 8 वर्ष कर दिया गया। इस कारण इसमें पहले से इस नीति के अंतर्गत आने वाले कर्मचारियों में असंतोष की वजह बना। इससे कानूनी चुनौतियां उत्पन्न हो गईं।
इसके साथ विभाग में पेंशन, ग्रेच्युटी से संबिधित कई मामले दर्ज हैं। इसी तरह एक अन्य अनुकंपा नियुक्ति मामले में जिसमें मृतक कर्मचारियों के परिवार के सदस्य लिए 5 प्रतिशत रिक्तियों को आरक्षित करती है। इसमें एक साथ सभी लंबित मामलों की भर्ती से विवाद उत्पन्न हो गया। इसमें कई पात्र उम्मीदवार खुद को बाहर पाते हैं। इस वजह से इन मुकदमों में वृद्धि हुई है। आउटसोर्स कर्मचारी भी निर्धारित दैनिक मानदेय से कम वेतन मिलने पर निराश हैं। वहीं, टेंडर की प्रक्रिया में इसी तरह की कई समस्याएं हैं। इन मामलों में करीब 3000 मामलों का समाधान हो चुका है। इससे विभाग को कुछ राहत मिली है। लेकिन इसके साथ नए मामलों में भी लगातार बढ़ोतरी हो रही है। इन मुकदमों में सबसे अधिक प्रभावित विभाग का कर्मचारी वर्ग है।
सरकार को मुकदमों से संबंधित नीतियों में बदलाव करने की जरूरत है। नीतियों में खामियों के कारण मतभेद उत्पन्न होने से मुकदमों की वजह बनते हैं- जगदीश के. राजटा, जिला एटॉर्नी