हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने शिमला के टुटू के पास बंदरों के आतंक से युवती की मौत पर कड़ा संज्ञान लिया है। खंडपीठ ने राज्य सरकार को आदेश दिए हैं कि वह बंदरों को वर्मिन घोषित करने पर स्थिति स्पष्ट करे। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान और न्यायाधीश विरेंदर सिंह की खंडपीठ ने मामले की सुनवाई 15 मई को निर्धारित की है। मामले को गंभीरता से लेते हुए अदालत ने केंद्र सरकार के पर्यावरण मंत्रालय को प्रतिवादी बनाया है।
इसके अलावा प्रधान सचिव वन, उपायुक्त शिमला, आयुक्त नगर निगम और डीएफओ वन्य जीव को प्रतिवादी बनाया गया है। अमर उजाला में प्रकाशित खबर ” शिमला में बंदरों के हमले में छात्रा की गिरकर मौत ” पर अदालत ने संज्ञान लिया है। खबर प्रकाशित की गई थी कि प्रदेश की राजधानी शिमला में उत्पाती बंदरों के हमले में एक और जान चली गई। शहर के ढांडा क्षेत्र में सोमवार को बंदरों के हमले के कारण एक युवती अपने घर की तीसरी मंजिल से गिर गई।
युवती को आईजीएमसी लाया गया, लेकिन रास्ते में ही उसने दम तोड़ दिया। पुलिस के अनुसार हिमांशी (19) पुत्री अशोक शर्मा अपने घर की तीसरी मंजिल पर कपड़े सुखाने गई थी। इस बीच, बंदरों ने उस पर हमला कर दिया। डरकर हिमांशी तीसरी मंजिल से नीचे गिर गई। लहूलुहान हालत में उसे आईजीएमसी लाया गया, जहां डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया। वर्ष 2011 में भी अमर उजाला ने बंदरों के आतंक को उजागर किया था। 17 सितंबर 2021 को प्रकाशित खबर पर हाईकोर्ट ने संज्ञान लिया था।
उसके बाद केंद्र सरकार ने हिमाचल सहित तीन राज्यों में नीलगाय, बंदर और जंगली सूअर को वर्मिन घोषित किया गया था। वर्ष 2016 में केंद्र सरकार की इन अधिसूचनाओ को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष चुनौती दी गई थी। 11 जुलाई 2016 को हिमाचल हाईकोर्ट ने मामला यह कहकर बंद कर दिया था कि सुप्रीम कोर्ट मामले में सुनवाई कर रहा है।
सुप्रीम कोर्ट ने 20 जून 2016 को उन अधिसूचनाओं पर रोक लगाने से इनकार कर दिया, जिसमें कुछ जानवरों को वर्मिन घोषित किया गया था। उसके बाद 15 जुलाई 2016 को सुप्रीम कोर्ट ने यह मामला बंद कर दिया था। बंदरों को मारने की पहले की अनुमति 4 फरवरी, 2020 को समाप्त हो गई थी। उसके बाद सरकार ने बंदरों को मारने के लिए केंद्रीय पर्यावरण और वन मंत्रालय से अनुमति के नवीनीकरण की मांग नहीं की।