आयात शुल्क में कटौती तो सिर्फ शुरुआत है, अमेरिका का असल मकसद तो जेनेटिकली मॉडिफाइड (जीएम) सेब और चावल का भारत में निर्यात शुरू करना है। देश के जाने माने कृषि विशेषज्ञ देवेंद्र शर्मा का कहना है कि अगर देश और सेब को बचाना है तो अमेरिकी सेब पर 70 फीसदी शुल्क बरकरार रखना जरूरी है। अमेरिका डब्ल्यूटीओ के माध्यम से भारत पर जीएम सेब और चावल के आयात को स्वीकार करने के लिए कानूनों में बदलाव का दबाव बना रहा है

गर आयात शुल्क में कटौती हुई तो उसका अगला प्रयास जीएम चावल और सेब के निर्यात को अनुमति दिलाने रहेगा। 2018 में आयात शुल्क 50 से बढ़ाकर 70 फीसदी करने के बाद देश में अमेरिकी सेब के आयात में भारी कमी आई थी और देश के सेब को अच्छी कीमतें मिलना शुरू हुई थी। देवेंद्र का कहना है कि गुणवत्ता के हिसाब से हिमाचली सेब कई गुणा बेहतर है। इंग्लैंड ऑक्सफोर्ड की संस्था कैबी ने अपनी स्टडी में बताया है कि अमेरिकी सेब में 106 तरह की बीमारियां हैं। अगर अमेरिका को उसका सेब वापस भेज दिया जाए तो अमेरिका साफ इंकार कर देगा।

खराब गुणवत्ता के सेब को आयात करने की कोशिश क्यों
देवेंद्र ने सवाल किया है कि आखिर खराब गुणवत्ता के सेब को देश में आयात करने की कोशिश क्यों की जा रही है? सुझाव दिया कि स्वदेशी सेब के उत्पादन को बढ़ाने और बाजार उपलब्ध करवाने के लिए सरकार को प्रयास करने चाहिए। वाणिज्य विभाग के अतिरिक्त सचिव के बयान पर दुख जताते हुए शर्मा ने कहा है कि घरेलू एल्यूमिनियम और इस्पात को अमेरिका में बाजार मिले, इसके लिए देश की कृषि को ताक पर रखा जा रहा है। जब भी  निर्यात पर समस्या आई है, सरकारों ने कृषि की ही बलि ली है।

मुख्यमंत्री दिल्ली कूच करें बागवान आपके साथ हैं
मुख्यमंत्री सुक्खू की ओर से अमेरिकी सेब पर आयात शुल्क घटाने के फैसले को बागवानों के खिलाफ करार देने के बयान का संयुक्त किसान मंच ने स्वागत किया है। मंच के संयोजक हरीश चौहान और संजय चौहान ने कहा है कि बागवानों के हित में मुख्यमंत्री इस मुद्दे को लेकर दिल्ली कूच करें, बागवान आपके साथ चलेंगे। 2024 के चुनावों में कांग्रेस को सेब सहित सभी कृषि उत्पादों पर आयात शुल्क 100 फीसदी करने की गारंटी भी देनी चाहिए। हरीश चौहान ने कहा है कि प्रधानमंत्री को सेब और इस्पात को एक ही तराजू में नहीं तोलना चाहिए। इस्पात और एल्यूमिनियम के निर्यात के लिए सेब की बलि देना अन्याय है। औद्योगिक लाभ के लिए औद्योगिक स्तर पर समझौता होना चाहिए।